दिवाली का विज्ञान बहुत ही रोचक है, क्योंकि यह त्योहार सांस्कृतिक परंपराओं को पर्यावरण, स्वास्थ्य और मनोविज्ञान के तत्वों से जोड़ता है।
1. प्रकाश और अंधकार: दिवाली, जिसे “रोशनी का त्योहार” भी कहा जाता है, कार्तिक माह की अमावस्या की रात को मनाई जाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दीपक जलाने की इस परंपरा का एक व्यावहारिक पहलू भी है। तेल के दीपक हल्की गर्मी और रोशनी देते हैं, जिससे कीट और मच्छर दूर रहते हैं, जो मानसून से सर्दियों के संक्रमण के दौरान सफाई और स्वास्थ्य में सहायक होता है।
2. घर की सफाई: दिवाली से पहले घरों की सफाई की जाती है। यह केवल परंपरा ही नहीं है; इसका स्वास्थ्य से भी गहरा संबंध है क्योंकि इससे धूल, एलर्जी और कीट दूर होते हैं। साफ-सुथरी जगहें मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार करती हैं, तनाव को कम करती हैं और भलाई की भावना को बढ़ाती हैं।
3. आयुर्वेदिक प्रभाव: दिवाली की मिठाइयों में अक्सर गुड़, इलायची, लौंग और घी जैसे तत्व होते हैं, जो शरीर को गर्म रखते हैं और रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। ये मिठाइयां सिर्फ स्वाद के लिए नहीं, बल्कि ठंडे मौसम में ऊर्जा और पोषण देने के लिए भी होती हैं।
4. सामाजिक संबंध और मानसिक स्वास्थ्य: दिवाली परिवार और समाज को एकजुट करती है, जिसका मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव होता है। लोगों से मिलना-जुलना, खुशियाँ साझा करना और संबंधों को मजबूत करना मानसिक स्थिति को बेहतर बनाता है, अकेलेपन को कम करता है और भावनात्मक मजबूती बढ़ाता है।
5. ध्वनि और कंपन: पुराने समय में पटाखे फोड़ने का उद्देश्य वातावरण को साफ करना माना जाता था। ध्वनि से उत्पन्न कंपन से कुछ समय के लिए हवा में मौजूद हानिकारक कण बिखर सकते हैं। हालांकि, वर्तमान में ध्वनि और वायु प्रदूषण को देखते हुए पर्यावरण के अनुकूल पटाखों और हरित दीपावली पर जोर दिया जा रहा है।
6. रंग और मनोविज्ञान: रंगोली और अन्य रंगीन सजावट का उपयोग केवल सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि इसका मानसिक प्रभाव भी होता है। रंग मूड को प्रभावित करते हैं, और त्योहार के दौरान जीवंत रंग खुशी और सकारात्मकता को बढ़ाते हैं।
इन परंपराओं से यह स्पष्ट होता है कि दिवाली में सांस्कृतिक ज्ञान के साथ वैज्ञानिक तत्व जुड़े हुए हैं, जो स्वास्थ्य, खुशी और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देते हैं।
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